जब हनुमान जी ने सत्यभामा, गरुण और सुदर्शन चक्र का घमण्ड चूर किया(Part-2),
भगवान अपने भक्तों का सदा कल्याण करते हैं| इसलिए उन्होंने हनुमान जी का स्मरण किया| तत्काल हनुमान जी द्वारिका आ गए| जान गए कि श्रीकृष्ण ने क्यों बुलाया है| श्रीकृष्ण और श्रीराम दोनों एक ही हैं, वह यह भी जानते थे| इसीलिए सीधे राजदरबार नहीं गए कुछ कौतुक करने के लिए उद्यान में चले गए| वृक्षों पर लगे फल तोड़ने लगे, कुछ खाए, कुछ फेंक दिए, वृक्षों को उखाड़ फेंका, कुछ तो तोड़ डाला… बाग वीरान बना दिया| फल तोड़ना और फेंक देना, हनुमान जी का मकसद नहीं था… वह तो श्रीकृष्ण के संकेत से कौतुक कर रहे थे… बात श्रीकृष्ण तक पहुंची, किसी वानर ने राजोद्यान को उजाड़ दिया है… कुछ किया जाए| श्रीकृष्ण ने गरुड़ को बुलाया| कहा, जाओ, सेना ले जाओ| उस वानर को पकड़कर लाओ|
गरुड़ ने कहा, प्रभु, एक मामूली वानर को पकड़ने के लिए सेना की क्या जरूरत है? मैं अकेला ही उसे मजा चखा दूंगा| कृष्ण मन ही मन मुस्करा दिए… जैसा तुम चाहो, लेकिन उसे रोको| जाकर… वैनतेय गए| हनुमान जी को ललकारा, बाग क्यों उजाड़ रहे हो? फल क्यों तोड़ रहे हो? चलो, तुम्हें श्रीकृष्ण बुला रहे हैं|
हनुमान जी ने कहा, मैं किसी कृष्ण को नहीं जानता| मैं तो श्रीराम का सेवक हूं| जाओ, कह दो, मैं नहीं आऊंगा|
गरुड़ क्रोधित होकर बोला, तुम नहीं चलोगे तो मैं तुम्हें पकड़कर ले जाऊंगा| हनुमान जी ने कोई उत्तर नहीं दिया… गरुड़ की अनदेखी कर वह फल तोड़ते रहे| गरुड़ को समझाया भी, वानर का काम फल तोड़ना और फेंकना है, मैं अपने स्वभाव के अनुसार ही कर रहा हूं| मेरे काम में दखल न दो| क्यों झगड़ा मोल लेते हो, जाओ… मुझे आराम से फल खाने दो|
गरुड़ नहीं माना… तब हनुमान जी ने अपनी पूंछ बढ़ाई और गरुड़ को दबोच लिया| उसका घमंड दूर करने के लिए कभी पूंछ को ढीला कर देते, गरुड़ कुछ सांस लेता, और जब कसते तो गरुड़ के मानो प्राण ही नि�